प्रथम टुडे
जबलपुर। शहर के एक अधिवक्ता ने तहसीलदार प्रदीप कुमार तिवारी पर प्रकरण को पुनः स्थापित करने और आगे की कार्यवाही करने के एवज में 5000 रुपये माँगने का गंभीर आरोप लगाया है। अधिवक्ता ने इस संबंध में कलेक्टर जबलपुर को लिखित शिकायत देकर कार्रवाई की मांग की है।
क्या है मामला?
अधिवक्ता यशवंत दुबे ने बताया कि वे जय बाबा जन कल्याण समिति, जबलपुर की ओर से खसरा नंबर 121, रकबा 0.405 हेक्टेयर के नामांतरण के लिए आवेदन कर रहे थे।
यह भूमि वर्ष 1997 के पंजीकृत तमलीकनामा के आधार पर समिति के नाम होने का दावा किया गया है।
दुबे के अनुसार—
- 03 सितंबर 2025 को उन्होंने तहसीलदार कार्यालय में नामांतरण का आवेदन लगाया था।
- पटवारी ने प्रतिवेदन भी लगा दिया था और मामले की सुनवाई 24 नवंबर तथा उसके बाद 05 दिसंबर की तारीख पर तय हुई थी।
- तहसीलदार ने इस पेशी में “सर्टिफाइड कॉपी” लाने को कहा था।
लेकिन अधिवक्ता का आरोप है कि 02 दिसंबर 2025 को ही प्रकरण अचानक खारिज कर दिया गया। इसकी जानकारी मिलने पर उन्होंने व्हाट्सऐप के माध्यम से तहसीलदार को स्थिति बताई।
‘5000 रुपये माँगने’ का आरोप
अधिवक्ता का कहना है कि वे 11 दिसंबर को दोपहर करीब 12:40 बजे तहसील कार्यालय पहुँचे, जहाँ अन्य अधिवक्ता भी मौजूद थे।
शिकायत के मुताबिक—
“सारी जानकारी देने के बाद तहसीलदार ने मुझसे 5000 रुपये की मांग कर दी। यह सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने उन्हें बताया कि यह संपत्ति तिलवारा स्थित मंदिर से संबंधित है, जहाँ धार्मिक गतिविधियाँ चलती हैं। इसके बावजूद उन्होंने खुलेआम रुपये माँगे।”
दुबे ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने विरोध किया तो तहसीलदार ने बातचीत रिकॉर्ड करना शुरू कर दी। अधिवक्ता ने भी रिकॉर्डिंग की बात कही है।
‘दान पेटी’ वाली टिप्पणी पर विवाद
शिकायत में यह भी उल्लेख है कि जब अधिवक्ता ने पूछा कि खारिज प्रकरण को नंबर पर लाने के लिए क्या प्रक्रिया होगी, तो कथित रूप से तहसीलदार ने कहा—
“मंदिर में दान पेटी होती है, भक्त लोग दान करते हैं… आप भी न्यायालय को मंदिर समझकर 5000 रुपये दान कर दीजिए, काम हो जाएगा।”
अधिवक्ता का कहना है कि इस पर विवाद बढ़ गया और कार्यालय में मौजूद लोगों ने भी बातचीत सुनी।
क्या माँग की शिकायतकर्ता ने?
अधिवक्ता ने कलेक्टर से आग्रह किया है कि—
- तहसीलदार प्रदीप कुमार तिवारी के विरुद्ध जांच व कार्रवाई की जाए।
- न्यायालयीन/तहसीली प्रक्रिया में रिश्वत जैसी अवैध मांगें न की जाएँ, इसके लिए सख्त निर्देश दिए जाएँ।
प्रशासन का पक्ष
शिकायत कलेक्टर कार्यालय को दी गई है। कलेक्टर या तहसीलदार का आधिकारिक पक्ष खबर लिखे जाने तक उपलब्ध नहीं हो सका।

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