प्रथम टुडे जबलपुर।
संस्कारधानी में इस बार दशहरा चल समारोह सिर्फ धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं रहा। इस बार शहर में एक “अनोखी” परंपरा की शुरुआत हुई — डीजे प्रतियोगिता की। बताया जा रहा है कि गढ़ा दशहरा चल समारोह से इस प्रतियोगिता की शुरुआत हुई, जिसमें यह देखने की होड़ लगी कि किस डीजे की आवाज़ सबसे तेज़ और सबसे प्रभावशाली है।
सूत्रों के अनुसार इस प्रतियोगिता में कई डीजे संचालकों ने भाग लिया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि प्रतियोगिता का विजेता कौन रहा, लेकिन इस “प्रतियोगिता” के दौरान जो कुछ हुआ, उसने हाई कोर्ट के निर्देशों और प्रशासनिक जिम्मेदारी दोनों पर सवाल खड़े कर दिए।
हाई कोर्ट के आदेशों की अनदेखी
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने पहले ही धार्मिक आयोजनों में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने और सीमित डेसिबल स्तर पर ही साउंड सिस्टम के उपयोग के निर्देश जारी किए हैं। बावजूद इसके चल समारोह में 20 से 25 साउंड बॉक्स तक लगाए गए। बड़ी-बड़ी गाड़ियों में रखे साउंड बॉक्सों से तेज़ आवाज़ में गाने बजाए गए, जिससे आसपास के इलाकों में देर रात तक शोरगुल मचा रहा।
प्रशासन मौन, सोशल मीडिया पर वायरल हुई रीलें
सोशल मीडिया पर इन आयोजनों के वीडियो और रीलें जमकर वायरल हो रही हैं, जिनमें मंचों पर बड़े आकार के डीजे बॉक्स और तेज़ धुनों पर नाचते लोग साफ़ देखे जा सकते हैं। इसके बावजूद जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। पूरा प्रशासनिक तंत्र मानो “देखता रहा पर बोलता नहीं” की स्थिति में था।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
कई चिकित्सकों ने चिंता जताई है कि लगातार तेज ध्वनि के संपर्क में रहने से लोगों के कानों की सुनने की क्षमता, हृदय गति, और मानसिक संतुलन पर गंभीर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि तेज ध्वनि की कंपनें (वाइब्रेशन) दिल के मरीजों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं।
प्रशासनिक शिथिलता पर उठे सवाल
प्रशासन की निष्क्रियता पर अब शहरवासियों में भी नाराज़गी है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब कोर्ट के आदेश मौजूद हैं तो फिर ऐसी प्रतियोगिता की अनुमति किसने दी? क्या यह कानून की खुली अवहेलना नहीं है?
त्योहारों के नाम पर बढ़ती शोरगुल की यह प्रवृत्ति आने वाले समय में और भी गंभीर हो सकती है, यदि जिला प्रशासन और पुलिस ऐसे आयोजनों पर नियंत्रण नहीं करते।
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