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Monday, September 15, 2025

एशिया कप की जीत और पाकिस्तान को लेकर उठते सवाल

 


प्रथम टुडे,  ,(सच की बात सबके साथ)

भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ हालिया एशिया कप का मुकाबला आपने देखा होगा और देशवासियों की तरह आपने भी अपनी टीम की जीत पर गर्व महसूस किया होगा। लेकिन इसी बीच कुछ सवाल भी उठते हैं—सवाल जो क्रिकेट से आगे बढ़कर कूटनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और हमारी “सॉफ्ट पावर” से जुड़े हैं।

इतिहास के कुछ पन्ने

  • 1990 और 1993 में भारत ने पाकिस्तान के साथ बढ़े तनाव के कारण एशिया कप में खेलने से इनकार कर दिया था।
  • 1986 में श्रीलंका में आयोजित एशिया कप में भी भारत ने हिस्सा नहीं लिया था, क्योंकि उस समय श्रीलंका में तमिल समुदाय पर अत्याचार और गृह युद्ध की स्थिति बनी हुई थी।

यानी, खेल के मंच पर भी देश की संवेदनशीलता और राजनीतिक परिस्थिति को ध्यान में रखा गया था।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण

  • दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद की नीति (Apartheid) के चलते 21 वर्षों तक आईसीसी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर रखा।
  • 25 मई 2020 को अमेरिका में हुई जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद “ब्लैक लाइव्स मैटर” आंदोलन का असर क्रिकेट तक दिखा। क्रिकेट अमेरिका में लोकप्रिय नहीं है, फिर भी विश्वभर के क्रिकेटरों ने मैच से पहले घुटने टेककर इस अभियान का समर्थन किया।

इससे यह स्पष्ट होता है कि खेल केवल खेल नहीं रहता, बल्कि वह वैश्विक मूल्यों और संदेशों का वाहक भी बन जाता है।

भारत और पाकिस्तान का संदर्भ

ऐसे में सवाल उठता है—जब दक्षिण अफ्रीका को अलग-थलग किया जा सकता है, तो पाकिस्तान को क्यों नहीं?
भारत दुनिया का सबसे शक्तिशाली क्रिकेट बोर्ड (BCCI) रखता है, जिसके पास न केवल आर्थिक ताकत है बल्कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को दिशा देने की क्षमता भी है। फिर भी, पाकिस्तान को आईसीसी टूर्नामेंटों से बाहर करने की कोई ठोस पहल अब तक क्यों नहीं की गई?

क्या हम अपनी “सॉफ्ट पावर” का इस्तेमाल करने से चूक गए? क्या यह वह अवसर नहीं था, जब भारत पाकिस्तान को खेल, कारोबार और कूटनीति—हर क्षेत्र में अकेला छोड़ सकता था?

खेल और आतंक एक साथ नहीं

यदि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”, तो आतंकवाद और खेल भी साथ-साथ नहीं चल सकते। समय आ गया है कि पाकिस्तान को खेल के मैदान पर भी आईना दिखाया जाए। बीसीसीआई यदि ठोस रुख अपनाए और अन्य देशों को विश्वास में लेकर दबाव बनाए, तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अलग-थलग करना असंभव नहीं।

कप्तान सूर्यकुमार यादव का संदेश

इस बीच, भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव का जीत को पहलगाम में शहीद हुए सैनिकों को समर्पित करना वाकई काबिले-तारीफ कदम रहा। इससे क्रिकेट के प्रति सम्मान और देशभक्ति की भावना और मजबूत हुई है। लेकिन सवाल यही है कि अगर हमने उपरोक्त कदमों पर गंभीरता से विचार किया होता, तो यह सम्मान और भी बड़ा हो सकता था

एक अवसर था !

भारत की जीत न केवल खेल की उपलब्धि है बल्कि यह हमारे लिए एक अवसर भी है—अपने पड़ोसी को यह संदेश देने का कि आतंकवाद और खेल का मेल असंभव है। अब यह भारतीय क्रिकेट बोर्ड और सरकार दोनों के लिए सोचने का समय है कि क्या पाकिस्तान को हर मोर्चे पर अलग-थलग करने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।

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