हाईकोर्ट और कलेक्टर के स्पष्ट आदेशों की अवहेलना, पुलिस सुरक्षा में निकली 'बेवजह की देशभक्ति' रैली
जबलपुर | प्रथम टुडे
12 अगस्त को जारी हुए कलेक्टर के सख्त आदेश को आज नगर में बेशर्मी से चुनौती दी गई—वो भी कलेक्टर कार्यालय के बिल्कुल सामने। दोपहिया वाहनों की एक बड़ी रैली आज तेज़ आवाज़ में डीजे बजाते हुए कलेक्ट्रेट परिसर के सामने से गुज़री, और सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि यह पूरी रैली पुलिस की सुरक्षा में निकाली गई।
कलेक्टर के आदेश थे स्पष्ट – फिर कैसे मिली अनुमति?
ज्ञात हो कि कलेक्टर दीपक सक्सेना ने पुलिस अधीक्षक सम्पत उपाध्याय के प्रतिवेदन के आधार पर 12 अगस्त को ही एक आदेश जारी किया था। इसमें हाईकोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए यह कहा गया था कि 15 अगस्त से लेकर शरद पूर्णिमा तक किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में डीजे या तेज साउंड बॉक्स का उपयोग नहीं किया जाएगा। साथ ही, किसी भी प्रकार की वाहन रैली बिना सक्षम अनुमति के प्रतिबंधित रहेगी। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि अनुमति दी भी जाती है तो डीजे पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगा।
प्रशासनिक आदेशों का खुलेआम मजाक
लेकिन आज की यह रैली उन सभी आदेशों और प्रतिबंधों की सरेआम धज्जियां उड़ाती नजर आई। इस रैली में न सिर्फ दोपहिया वाहनों की लंबी कतार शामिल थी, बल्कि उसमें तेज़ आवाज़ में डीजे भी बजता रहा। और सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि इस रैली को पुलिस की एस्कॉर्ट मिली हुई थी—एक वाहन आगे और एक पीछे चलकर 'सुरक्षा' देती रही।
प्रश्न यह उठता है कि जब जिला प्रशासन द्वारा सख्त प्रतिबंध लागू किया गया है, तो फिर यह रैली किसकी अनुमति से निकाली गई? क्या पुलिस ने प्रशासनिक आदेशों को दरकिनार करते हुए यह ‘सुरक्षा’ दी, या फिर किसी दबाव में यह रैली निकाली गई?
'राष्ट्रीय पर्व' के नाम पर 'फूहड़ता' का प्रदर्शन
ऐसी रैलियों में अक्सर यह देखा गया है कि देशभक्ति के नाम पर कुछ देर तो देशभक्ति गीत चलते हैं, लेकिन उसके बाद डीजे पर फूहड़, अश्लील गाने बजने लगते हैं, जिससे न केवल आदेशों का उल्लंघन होता है बल्कि राष्ट्रीय पर्व की गरिमा भी आहत होती है।
इस बार उम्मीद की गई थी कि कलेक्टर का आदेश इन बेतरतीब और उद्दंड रैलियों पर लगाम लगाएगा। लेकिन आदेश के महज कुछ दिन बाद ही उसी आदेश को कलेक्टर कार्यालय के सामने से रौंदते हुए रैली निकाल दी गई, और प्रशासन मौन तमाशाई बना रहा।
आमजन में उठे सवाल – क्या नियम सिर्फ आम जनता के लिए हैं?
इस घटना के बाद आम नागरिकों में यह सवाल उठने लगे हैं कि जब कलेक्ट्रेट परिसर के सामने ही आदेशों की ऐसी अवहेलना होती है, तो जिले के अन्य हिस्सों में प्रशासन किस तरह नियंत्रण करेगा? क्या कलेक्टर का आदेश महज कागज़ी औपचारिकता था? या फिर कुछ लोगों को नियमों से ऊपर माना जाता है?
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