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Wednesday, July 16, 2025

ईओडब्ल्यू की खात्मा रिपोर्ट पर कोर्ट का सवाल — पूर्व आरटीओ संतोष पाल को बचाने का आरोप

 

जबलपुर | प्रथम टुडे
भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे जबलपुर के पूर्व आरटीओ संतोष पाल के मामले में अब जांच एजेंसी की साख सवालों के घेरे में है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) जबलपुर द्वारा पेश की गई खात्मा रिपोर्ट को कोर्ट ने संदेह के घेरे में माना है। कोर्ट ने रिपोर्ट पर उठी आपत्तियों को गंभीर बताते हुए जांच एजेंसी से बिंदुवार जवाब मांगा है।

कोर्ट में उठी गंभीर आपत्तियां

अधिवक्ता राजा कुकरेजा और स्वप्निल सराफ की ओर से पेश की गई आपत्ति में आरोप लगाया गया कि EOW ने जानबूझकर अधूरी और पक्षपाती रिपोर्ट तैयार की। वकील विजय श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि जांच एजेंसी ने जिन संपत्तियों, आय, वाहनों और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों को रिपोर्ट में शामिल करना चाहिए था, उन्हें या तो छुपा लिया गया या उनके मूल्य का जानबूझकर कम आंकलन किया गया।

EOW अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध

खात्मा रिपोर्ट तैयार करने वाले तत्कालीन EOW एसपी आर.डी. भारद्वाज और आईजी सुनील पाटीदार की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। आरोप है कि इन अधिकारियों ने:

  • 1.95 करोड़ रुपए की इनवेंट्री को रिपोर्ट से बाहर रखा,
  • शताब्दीपुरम के 4 भूखंडों में से सिर्फ 2 को रिपोर्ट में दर्शाया,
  • 5 मंजिला भवन को सिर्फ दो मंजिला बताया,
  • फर्जी किरायेदार अनुबंध पेश कर आय बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई,
  • रायफल, मकान, गाड़ियाँ और अन्य संपत्तियाँ रिपोर्ट से गायब रखीं।

संतोष पाल को फायदा पहुंचाने की मंशा?

वकील विजय श्रीवास्तव का कहना है कि रिपोर्ट में की गई ‘त्रुटियां’ वास्तव में जानबूझकर की गईं और इनका सीधा लाभ आरोपी को हुआ। उन्होंने दावा किया कि ईओडब्ल्यू के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत से यह रिपोर्ट तैयार की गई ताकि संतोष पाल और उनके परिजनों को राहत मिल सके।

कोर्ट ने मांगा जवाब, अगली सुनवाई 29 जुलाई को

कोर्ट ने खात्मा रिपोर्ट को निरस्त करते हुए निर्देश दिए हैं कि:

  • ईओडब्ल्यू आपत्तियों पर बिंदुवार जवाब प्रस्तुत करे,
  • शिकायतकर्ताओं द्वारा पेश दस्तावेजों की प्रत्येक प्रति EOW को सौंपी जाए,
  • ईओडब्ल्यू हर बिंदु पर स्पष्ट टिप्पणी देकर जवाब दे।

अब यह मामला 29 जुलाई 2025 को दोबारा कोर्ट में पेश किया जाएगा।

प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल

इस पूरे घटनाक्रम ने यह गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या आर्थिक अपराधों की जांच कर रही एजेंसी राजनीतिक या प्रभावशाली दबाव में काम कर रही है?
यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह सिर्फ एक भ्रष्ट अधिकारी का मामला नहीं रहेगा, बल्कि जांच व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सीधा हमला होगा।

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