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Friday, July 25, 2025

गेमिंग एप में बिखरता बचपन: लत, लूट और लापरवाही का डिजिटल जाल

 

जबलपुर/प्रथम टुडे 
मोबाइल और इंटरनेट जहां एक ओर आधुनिक शिक्षा और संचार का सशक्त माध्यम बने हैं, वहीं दूसरी ओर यही तकनीक अब बच्चों और युवाओं के भविष्य के लिए गंभीर खतरा बनती जा रही है। खासकर ऑनलाइन गेमिंग एप्स ने मनोरंजन की आड़ में मानसिक, सामाजिक और आर्थिक बर्बादी के रास्ते खोल दिए हैं।

खेल नहीं, फंसा रहे हैं जुए में

  • पहले यह केवल गेम खेलने तक सीमित था, अब बात सट्टा, हार-जीत, कैश बोनस और चैटिंग फीचर्स तक पहुंच चुकी है।
  • गेम्स जैसे – Free Fire, Ludo Supreme, Teen Patti, Rummy, Poker, Dream11, MPL – के ज़रिए छोटे बच्चे और युवा वर्ग आर्थिक हानि, मानसिक तनाव और कई मामलों में अपराध तक की राह पकड़ चुके हैं।

जब बच्चे चुराने लगे मां-बाप का क्रेडिट कार्ड

  • हाल ही में सामने आए मामलों में:
    • नाबालिगों ने क्रेडिट कार्ड, UPI और वॉलेट के जरिए हजारों रुपये गेमिंग में गंवा दिए।
    • कई बच्चों ने हार और आर्थिक नुकसान के चलते आत्महत्या की कोशिश की।
    • कुछ ने पैसे जुटाने के लिए झूठ बोलकर या चोरी कर खर्च किए।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर

  • विशेषज्ञों के अनुसार, गेमिंग की लत:
    • Decision-making क्षमता को कमजोर करती है।
    • बच्चों को चिड़चिड़ा, आक्रामक और अकेला बना देती है।
    • लंबे समय तक खेलने से Gaming Disorder जैसी मानसिक बीमारी भी WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने मान्यता दी है।

कानूनी पहलू: ऑनलाइन गेमिंग के ग्रे एरिया में फंसी सरकार

  • भारत में फिलहाल ऑनलाइन गेमिंग पर कोई स्पष्ट केंद्रीय कानून नहीं है
  • कुछ राज्य, जैसे तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश ने ऑनलाइन रमी और बेटिंग गेम्स पर रोक लगाई है, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं।
  • आईटी एक्ट 2000 की धारा 67B के तहत नाबालिगों को नुकसान पहुंचाने वाली डिजिटल सामग्री अपराध मानी जाती है।
  • जुए और सट्टा पर भारतीय दंड संहिता (BNS) और पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 के तहत सख्त प्रावधान हैं, लेकिन ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां ‘Skill vs Chance’ के अंतर के नाम पर लीगल ग्रे जोन में बचती जा रही हैं।

क्यों फंस रहे हैं बच्चे और युवा?

  1. लॉकडाउन के दौरान मोबाइल का आदान-प्रदान और ऑनलाइन क्लासेज का बहाना।
  2. फ्री गेमिंग से शुरू होकर इन-ऐप परचेज, कैश बोनस और चैट ऑप्शन की लत।
  3. बड़े-बड़े फिल्मी सितारे और क्रिकेटर ब्रांड एम्बेसडर बनकर इन्हें प्रमोट कर रहे हैं।
  4. अभिभावकों की लापरवाही और टेक्नोलॉजी की सीमित समझ।

समाधान की ज़रूरत – अब नहीं तो कभी नहीं

सरकार को चाहिए:

  • सेंट्रल ऑनलाइन गेमिंग रेगुलेशन लॉ लाया जाए।
  • गेमिंग एप में KYC और 21 वर्ष से कम आयु के लिए एक्सेस प्रतिबंधित किया जाए।
  • विज्ञापन नीति बनाई जाए जिससे नाबालिगों को टारगेट कर प्रचार न किया जा सके।

समाज और परिवार को चाहिए:

  • बच्चों के मोबाइल उपयोग पर सख्त निगरानी
  • पेरेंटल कंट्रोल एप्स का प्रयोग।
  • स्कूलों में डिजिटल एडिक्शन से जुड़े जागरूकता सत्र

प्रश्न यह नहीं कि बच्चा क्या खेल रहा है...

...बल्कि यह कि क्या वह खेल रहा है या खेला जा रहा है?

बच्चों का भविष्य दांव पर है। तकनीक से भागा नहीं जा सकता, लेकिन उसे नियंत्रित और मर्यादित ज़रूर किया जा सकता है।


अनुराग दीक्षित  (संपादक प्रथम टुडे)

"सच की बात सबके साथ"

 

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