प्रथम टुडे जबलपुर।
हिस्ट्रीशीटर अब्दुल रज्जाक के नाम से जुड़े फर्जी डायग्नोस्टिक सेंटर "सुप्रा डायग्नोस्टिक" पर नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई के बाद सेंटर को सील कर दिया गया है, लेकिन यह कार्रवाई कई गंभीर और चौंकाने वाले सवालों को जन्म दे गई है।
प्रशासनिक जांच के दौरान यह बात सामने आई कि जिस समय टीम मौके पर पहुंची, तब लगभग 10 से 12 मरीज एमआरआई और सीटी स्कैन करवाने पहुंचे हुए थे। यह संख्या इस बात का संकेत है कि इस सेंटर में रेगुलर मरीज भेजे जा रहे थे — यानी यहां पर रेफरेंस के जरिए आने वाले मरीजों की संख्या अधिक थी।
रेफरेंस की जड़ में कौन डॉक्टर?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन मरीजों को रेफर करने वाले डॉक्टर कौन थे?
क्या वे पंजीकृत और प्रशिक्षित डॉक्टर थे या कथित झोलाछाप चिकित्सक जो कमीशन के लालच में यहां मरीज भेज रहे थे?
सूत्रों की मानें तो सेंटर की रेफरेंस लिस्ट और रजिस्टर में उन डॉक्टरों के नाम दर्ज हो सकते हैं, जो इस फर्जी संस्थान से सीधे जुड़े थे। यदि ऐसा है, तो यह मामला और भी गंभीर बन जाता है क्योंकि इससे यह साबित होता है कि फर्जीवाड़ा केवल सेंटर तक सीमित नहीं था, बल्कि कुछ डॉक्टरों की संलिप्तता भी इसमें हो सकती है।
जांच की दिशा: रिपोर्ट में हस्ताक्षर किसके?
एक अन्य गंभीर पहलू यह भी है कि यदि सेंटर में कोई योग्य टेक्नीशियन या विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं था, तो वहां से दी जाने वाली रिपोर्टों की प्रमाणिकता क्या थी?
किसके हस्ताक्षर से मरीजों को रिपोर्ट दी जाती थी?
कहीं ऐसा तो नहीं कि बिना विशेषज्ञ डॉक्टर की निगरानी में रिपोर्टें बनाई जा रही थीं और सीधे रेफर करने वाले डॉक्टरों या क्लीनिकों को भेज दी जाती थीं?
इस बात की जांच जरूरी है कि कहीं गलत रिपोर्टिंग के चलते किसी मरीज को गलत इलाज तो नहीं मिला। यदि ऐसा हुआ है, तो यह सीधे-सीधे मरीज की जान से खिलवाड़ के बराबर है।
IMA की भूमिका और आगे की कार्रवाई
अब समय आ गया है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) भी इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाए और यह पता लगाए कि ऐसे कौन डॉक्टर थे जो इस फर्जी सेंटर से जुड़े हुए थे।
यदि इसमें झोलाछाप डॉक्टर शामिल हैं तो उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई मरीज इस तरह के जाल में न फंसे।
शहर के मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट के कैस भी यहां आते थे
जबलपुर के सबसे मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट जिनका नाम शहर में ही नहीं प्रदेश में लिया जाता है और यह भी कहा जाता है कि वह जो बता देते हैं उसको कोई भी डॉक्टर नकार नहीं सकत
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यह मशहूर डॉक्टर और उनकी लड़की सबसे ज्यादा यहां पर कैसे रेफर करते थे जांच के लिए जबकि सरकारी एम आद आई सेंटर उनके अस्पताल के सामने है मेडिकल कॉलेज में
प्रशासन की जिम्मेदारी क्या?
सुप्रा डायग्नोस्टिक सेंटर तो प्रशासन ने सील कर दिया है, लेकिन अब प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह वहां उपलब्ध दस्तावेजों और रजिस्टरों की गहन जांच करे।
मामले में यदि रेफर करने वाले डॉक्टरों की भूमिका उजागर होती है, तो उनके खिलाफ भी वैधानिक कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।
यह केवल एक फर्जी डायग्नोस्टिक सेंटर का मामला नहीं है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की जवाबदेही और नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है।
अध्यक्ष I M A का कहना
इस बारे में अध्यक्ष आई एम ए ( I M A ) डॉ. रिचा शर्मा ने कहा कि ऐसे सेंटर जो चल रहे हैं और जिनके ऊपर प्रशासन कार्यवाही कर रहा है वह सराहनीय है और इसके साथ हमारे द्वारा भी नजर रखी जा रही है. कि वह कौन लोग हैं जो इस केंद्र में मरीज को रेफर करते थे.
उन्होंने कहा कि हमारे पास जैसे ही शिकायत आती है निश्चित रूप से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने यह भी कहा कि हमारी झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ मुहिम पहले ही चालू है और कई ऐसे झोला छाप डॉक्टर के ऊपर कार्यवाही भी हुई है
डॉ जितेंद्र जामदार ऑर्थो
शहर के मशहूर चिकित्सा और वरिष्ठ चिकित्सक के साथ समाजसेवी डॉ जितेंद्र जामदार ने कहां की यह विषय यह नहीं है कि वह किसका सेंटर है ऐसा कोई भी सेंटर अगर चल रहे हैं तो वह पूरी तरह गलत है और प्रशासन को इस पर कार्यवाही निश्चित ही करनी चाहिए

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