ग्वारीघाट से कैलाश धाम तक गूंजे ‘बम-बम भोले’ के जयकारे – ऐतिहासिक संस्कार कांवड़ यात्रा में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
प्रथम टुडे, जबलपुर।
जबलपुर की पावन धरती पर इस वर्ष की संस्कार कांवड़ यात्रा ने एक नया इतिहास रच दिया। ग्वारीघाट से कैलाश धाम तक निकली इस भव्य और ऐतिहासिक यात्रा में करीब डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालु भगवा वेशभूषा में कांवड़ उठाए शामिल हुए। यात्रा के मार्ग से गुजरते समय हर ओर केवल एक ही स्वर गूंज रहा था – “बोल बम… बम भोले।”
35 किलोमीटर की पदयात्रा, 14 किलोमीटर लंबी शोभायात्रा
भक्ति और उत्साह से ओतप्रोत इस यात्रा की लंबाई लगभग 13 से 14 किलोमीटर तक फैली रही, लेकिन श्रद्धालुओं ने कुल 35 किलोमीटर की दूरी तय कर कैलाश धाम पहुंचकर भगवान भोलेनाथ का नर्मदा जल से अभिषेक किया। इस अवसर पर सभी आयु वर्ग के लोग – बच्चे, युवा, बुजुर्ग और महिलाएं – बड़ी संख्या में शामिल हुए।
कांवड़ में नर्मदा जल और देव तुल्य वृक्ष
यात्रा में शामिल श्रद्धालु विशेष रूप से तैयार की गई कांवड़ में नर्मदा जल और देव तुल्य वृक्ष लेकर चल रहे थे। कैलाश धाम पहुंचने के बाद भक्तों ने जलाभिषेक किया और वृक्षों का कैलाश धाम की पहाड़ियों पर वृक्षारोपण के लिए अर्पण किया। यह यात्रा केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण का संदेश भी दे रही थी।
अद्भुत झांकियां और भोले का रूप
कांवड़ यात्रा में कई भक्त भगवान शिव का रूप धारण किए चल रहे थे। कोई शिवलिंग लेकर आगे बढ़ रहा था तो कोई शिव की भव्य पालकी। महाकाल की मनमोहक झांकियां श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनीं। जगह-जगह भक्तों ने श्रद्धा से सिर झुकाकर नमन किया।
जनप्रतिनिधियों और संत समाज की उपस्थिति
यात्रा का नेतृत्व भैया जी सरकार ने किया। उनके साथ हजारों श्रद्धालु “बम-बम भोले” के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़े।
- महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू स्वयं कांवड़ उठाए नजर आए।
- कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल, कांवड़ यात्रा के संयोजक शिव यादव और निलेश रावल भी प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
- उत्तर मध्य विधायक अभिलाष पांडे ने श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा की।
- नेता प्रतिपक्ष अमरीश मिश्रा, पूर्व पार्षद पंकज पांडे, रत्नेश अवस्थी, भारत सिंह यादव, भानु यादव, नीरज यादव और शरद अग्रवाल समेत कई गणमान्य लोग यात्रा में सम्मिलित हुए।
सेवा भावना का अनोखा उदाहरण
यात्रा मार्ग पर जगह-जगह फल और जल वितरण के लिए शिविर लगाए गए, जिससे कांवड़ियों की थकान और प्यास मिट सके। श्रद्धालुओं ने भी इस सेवा को प्रसाद स्वरूप स्वीकार किया।
श्रद्धा और उत्साह का संगम
ग्वारीघाट से प्रारंभ होकर कैलाश धाम तक यह यात्रा केवल भक्ति की नहीं, बल्कि शिव प्रेम और सामाजिक एकता का अद्भुत संगम बन गई। हर कोई शिवमय हो उठा। इस यात्रा ने यह साबित कर दिया कि जब आस्था और संस्कार मिलते हैं, तो न केवल इतिहास रचता है बल्कि पीढ़ियों को प्रेरित करता है।




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