जबलपुर में चपटा पर हमला: अपराध की अंधी गली में राजनीति का मुखौटा बेनकाब - Pratham Today, Sach Ki Baat SabKe Saath -->

Breaking

Sunday, July 20, 2025

जबलपुर में चपटा पर हमला: अपराध की अंधी गली में राजनीति का मुखौटा बेनकाब

 


 प्रथम टुडे जबलपुर।

शनिवार रात शहर के हनुमानताल क्षेत्र की हवा फिर खून की गंध से भर गई। निशाना बने कांग्रेस नेता और स्वयंभू समाजसेवी रईस अहमद उर्फ चपटा। उनके सिर पर समाजसेवा का ठप्पा, मगर पुलिस रिकॉर्ड पर अपराधों की लंबी फेहरिस्त — यही विरोधाभास इस घटना को और ज्यादा तीखा बनाता है।

इस हमले ने सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। क्या हमारा तंत्र इतना कमजोर हो चुका है कि अपराधियों को नेता बना देता है, उन्हें समाजसेवा का चेहरा देता है और पासपोर्ट बनवाने में भी अंधी आंखें खोल देता है?

रईस अहमद (चपटा)– अपराध और राजनीति का दोहरा चेहरा

रईस अहमद उर्फ चपटा, जबलपुर के उन नामों में से एक है जिनके लिए अपराध और राजनीति की रेखाएं कभी साफ नहीं रहीं।

  • उनके खिलाफ हत्या के प्रयास, अवैध हथियार रखने, और मारपीट जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
  • बावजूद इसके, वे खुद को कांग्रेस नेता और समाजसेवी के रूप में पेश करते रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि वे कुछ ही दिन पहले हज यात्रा से लौटे हैं। सवाल यह उठता है कि इतने आपराधिक मामलों के बावजूद उनका पासपोर्ट कैसे बन गया? पुलिस वेरीफिकेशन किसने किया और किस आधार पर? क्या यह सिस्टम की नाकामी है या फिर सत्ता और राजनीति का संरक्षण?

शनिवार रात का खौफनाक हमला

घटना शनिवार रात करीब 10 बजे की है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार –

  • रईस अहमद सड़क किनारे खड़े थे।
  • एक बाइक सवार से उनका विवाद हुआ।
  • बाइक सवार थोड़ी देर में अपने चार साथियों के साथ लौट आया।
  • देखते ही देखते चाकू चमका और हमला शुरू हो गया।

हमले में रईस अहमद गंभीर रूप से घायल हो गए। बीच-बचाव में आए उनके बेटे मोहम्मद अवेश और तीन अन्य युवक भी घायल हो गए।

गैंगवार या आपसी रंजिश?

पुलिस सूत्रों के मुताबिक हमलावरों की संख्या पांच थी। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह घटना सिर्फ आपसी रंजिश का नतीजा है या फिर किसी बड़ी गैंगवार की आहट।
हनुमानताल पहले भी ऐसी घटनाओं का गवाह रहा है। यह इलाका आपराधिक गिरोहों की हलचल का पुराना ठिकाना माना जाता है।

पुलिस और सिस्टम पर सवाल

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल पुलिस की भूमिका पर उठ रहा है।

  • कैसे अपराधों में लिप्त व्यक्ति का पासपोर्ट बन गया?
  • किस अफसर ने वेरीफिकेशन रिपोर्ट पास की?
  • क्या यह सिर्फ लापरवाही है या कोई 'सेटिंग' का खेल?

स्थानीय सूत्रों का दावा है कि हनुमानताल थाने के कुछ अफसरों की मिलीभगत की भी जांच होनी चाहिए। यह हमला एक बड़ी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है।राजनीति की चुप्पी और बयानबाजी

हमले की खबर फैलते ही 

राजनीतिक हलचल तेज हो गई।

  • कांग्रेस और अन्य दलों के कई नेता अस्पताल पहुंचे।
  • बयानबाजी शुरू हो गई, लेकिन किसी ने यह सवाल नहीं उठाया कि आखिर ऐसे लोग राजनीति में जगह कैसे बना लेते हैं।

यह घटना साफ दिखाती है कि अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता है और सिस्टम उन्हें रोकने के बजाय उनके लिए रास्ते बनाता है।

सिस्टम की सड़न का सबूत

यह सिर्फ एक हमला नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की सड़न का प्रमाण है।

  • अपराधियों को समाजसेवी का मुखौटा पहनाने वाले नेताओं पर सवाल उठते हैं।
  • पासपोर्ट और पुलिस वेरीफिकेशन में हुई चूक भ्रष्टाचार की बू देती है।

क्या इस बार भी पुलिस वही पुराना बयान दोहराएगी – "जांच जारी है"?
या फिर उन अफसरों की भी जवाबदेही तय होगी, जिन्होंने अपराधियों को 'साफ-सुथरे समाजसेवक' का रूप दिया?

No comments:

Post a Comment