कांवड़ यात्रा आस्था, परंपरा और तपस्या का अद्भुत संगम है
संस्कारधानी के शिवालयों से लोगों पर बरसती है कैलाशपति की कृपा
भगवान भोलेनाथ के जलाभिषेक से पापों का नाश और मनोकामनाओं की होती है पूर्ति
संस्कारधानी से हर वर्ष कावड़ यात्रा परम पूज्य श्रद्धेय संतगणों के सानिध्य में सबसे पहले माँ नर्मदा तट के गौरीघाट में पूजन कर प्रारंभ की जाती है। संस्कारधानी की इस ऐतिहासिक संस्कार कावंड़ यात्रा का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं कि जबलपुर में स्थित मटामार के पास कैलाश धाम,कचनार सिटी, गुप्तेश्वर, सकेतधाम, गोपालपुर के पशुपति नाथ,चरगंवा स्थित त्रिशूल मंदिर आदि मंदिरों से भगवान भोलेनाथ की कृपा और आशीर्वाद मिलता है बल्कि देश में स्थापित 12 ज्योर्तिलिंग क्रमशः बैजनाथ धाम, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, मल्लिककार्जुन, बाबा काशी विश्वनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, त्रेमकेश्वर, भीमाशंकर, नागेश्वर , घृष्णेश्वर और केदारनाथ शक्तिपीठ का दर्शन और उनपर जल अर्पित कर जो पुण्य लाभ भक्त लेते हैं, वे सारे पुण्य संस्कारधानी के शिवालयों में स्थापित भोलेनाथ पर जल अर्पित कर उनके दर्शनों से प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि कैलाशधाम में विराजित भगवान भोलेनाथ की कृपा संस्कारधानी के समस्त परिवारों में बरसती है। इस ऐतिहासिक कांवड़ यात्रा में संस्कारधानी और आस पास के क्षेत्रों से भी भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने और जल अर्पित करने हजारों की संख्या में कावड़िए शामिल होते हैं।
वैसे तो कावड़ यात्रा के संबंध में पौराणिक मान्यता है, कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की नींव रखी थी। कथा के अनुसार अपने अंधे माता-पिता की तीर्थ यात्रा की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाया और गंगा स्नान कराया। लौटते समय वे साथ में गंगाजल भी ले गए, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
एक और मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने भी कांवड़ यात्रा की थी। कहा जाता है कि उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसे भी कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
कांवड़ यात्रा आस्था, परंपरा और तपस्या का अद्भुत संगम है। समुद्र मंथन से जन्मी यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत और प्रभावशाली है। यह केवल एक धार्मिक रस्म नहीं बल्कि समर्पण, सेवा और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। सावन के महीने में शिवभक्तों की यह यात्रा उन्हें आत्मिक संतोष देती है और समाज को एकजुटता व सेवा की भावना सिखाती है। यही कारण है कि हर साल यह परंपरा और विशाल रूप में देखने को मिलती है।
कावंड़ यात्रा के धार्मिक महत्व:-
पापों का नाश, भगवान शिव की कृपा और मनोकामनाओं की पूर्ति । मान्यता है कि कांवड़ यात्रा करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। कांवड़ यात्रा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, खासकर संतान प्राप्ति और मनोरोगों से मुक्ति के लिए यह यात्रा विशेष फलदायी मानी जाती है। यह यात्रा भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती है।
जबलपुर में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व
जबलपुर में संस्कार कांवड़ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें भक्त नर्मदा नदी से जल भरकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं और साथ ही पौधे भी लगाते हैं। यह यात्रा पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है, क्योंकि भक्त कांवड़ के साथ-साथ पौधे भी लेकर चलते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में रोपित करते हैं। जबलपुर में कांवड़ यात्रा में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं, जो भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन करते हैं। जबलपुर में कांवड़ यात्रा में नर्मदा नदी के जल का उपयोग किया जाता है, जो पवित्र मानी जाती है और इसका अभिषेक शिव को प्रसन्न करने का एक महत्वपूर्ण उपासना है।
कैलाश धाम के अतिरिक्त जबलपुर में कचनार वाले भोलेनाथ, गुप्तेश्वर, गौरीघाट के साकेत धाम , भेड़ाघाट स्थित पशुपतिनाथ, चरगवाँ रोड स्थित त्रिशूल घाट, बगलेश्वर महादेव, नर्मदेश्वर भोलेनाथ आदि भी कांवड़ियों की आस्था के केन्द्र है और इन सबकी कृपा से ही संस्कारधानी में कोई आपदा नहीं आती एवम सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती रहती है।
-संजय मिश्रा
सहा. जनसम्पर्क अधिकारी,
नगर निगम जबलपुर,
सर इस खबर को थोड़ा सा छोटा करके बना दीजिए और उनके नाम हम यही रहेगा
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