[30/5, 10:08] अनुराग दीक्षित:
प्रथम श्रेणी जापानी:-- आज की दोस्ती एक सीधी रेखा पर खड़ी है। जहां कभी पत्रकारिता को जनमानस की आवाज और समाज का दर्पण कहा जाता था, वहीं आज यह केवल एक व्यावसायिक छवि सामने आई है। यह है कि अब पाठक नहीं, बल्कि 'ग्राहक' खोजे जा रहे हैं। चर्चा की गुणवत्ता से अधिक, उसकी बिक्री की चिंता है। परंतु यह पत्रकारिता का मूल उद्देश्य क्या था?
पाठक ही पहचान रहे हैं, ग्राहक नहीं
अगर हकीकत की बात हो तो आज भी वही अखबार या न्यूज चैनल सफल माना जाता है, जिसे वफादार पाठक या दर्शक मानते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, मीडिया के लिए अब 'विज्ञापनदाता' और 'क्लाइंट' महत्वपूर्ण हो गए हैं, न कि समाज की झलक या खोज से जुड़े मुद्दे।
कलम की आज़ादी पर व्यापार की बेड़ी
सच तो यह है कि आज अधिकांश पत्रकार किसी भी तरह के अलगाववादी नहीं हैं, बल्कि अपने संस्थान के व्यापारिक हितों के अनुरूप कार्य कर रहे हैं। उनकी कृति अब समाज की अपनी नहीं, बल्कि अयोग्य के हितों को दर्शाती है। यदि कोई पत्रकारिता विश्वसनीयता से कोई ऐसी प्रतिष्ठा नहीं उठाता है जो समाज में व्याप्त किसी घातक प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है, तो सबसे पहले यह देखा गया है कि यह लेख संस्थान के हितों से असहमत है तो नहीं रह रहा है। यदि शैतान होता है, तो पत्रकार का कलम बंद कर दिया जाता है।
संघर्षरत पत्रकार हैं, पर साथ हैं संगठन
हालाँकि इस अंधेरे में भी कुछ किरणें उजाले की राह दिखा रही हैं। हम अगर केवल अपने शहर की करते हैं, तो यहां के छात्रों की बातें वास्तुविदों की चिंताओं को इंगित करती हैं और उन्हें पत्थर की दिशा में ठोस कदम रखती हैं।
जबलपुर से राष्ट्र तक: पत्रकार परिषद का विस्तार
बेसबॉल के पत्रकार परिषद की शुरुआत दो सहभागी बन्धु-नलिन कांत वाजपेई और परमानंद तिवारी- एवं गंगा चरण मिश्रा द्वारा की गई थी। यह प्रयास पहले केवल शहर तक सीमित था, लेकिन ईमानदारी, संघर्ष और निष्कलंक भावना से प्रेरित कार्यों का परिणाम यह हुआ कि आज यह परिषद राष्ट्रीय स्तर पर 'राष्ट्रीय पत्रकार परिषद' के रूप में पहचान बना चुकी है।
आज इस परिषद रिपोर्ट पूरे भारत में जारी की गई है और यह युवा को वरिष्टों के दिशानिर्देश प्राप्त करने के साथ-साथ एक बढ़ावा मंच भी प्रदान कर रहे हैं।
पत्रकार सुरक्षा कानून: समय की मांग
इस हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर इस बात पर चर्चा करना बेहद जरूरी है कि एक ठोस और प्रभावशाली पत्रकार सुरक्षा कानून लाया जाए। पहले पत्रकार बिना किसी भय के दिखावा करते थे, उन्हें शासन-प्रशासन का सहयोग मिलता था। लेकिन पहले आज के पत्रकार ने अपने विचार रखते हुए सौ बार विचार किया है। यह भय का वातावरण संगीत के मूल स्वरूप को खंडित कर रहा है।
बदनामी का कलंक: व्यक्ति को करें, पत्रकारिता को नहीं को नहीं
अक्सर सुनने में आता है कि "कुछ शैतानों की वजह से पूरी तरह से बदनामी हो रही है।" यह बात तब होती है जब यह टिप्पणी किसी बाहरी व्यक्ति की नहीं होती, बल्कि खुद पत्रकार समुदाय के अंदर से आती है। अगर यह बात बार-बार डबलएग जाएगी, तो समाज में विश्वास की साख और अधिक गिर जाएगी। ग़लत लोगों को पहचानें, आलोचना करें - लेकिन पत्रकारिता को कटघरे में खड़ा करना नहीं।
युवा छात्रावास से एक अपील
जो युवा पत्रकारिता को अपनी परंपरा बनाना चाहते हैं, उनका यही कहना है कि बुजुर्गों का मार्गदर्शन लें, उनके अनुभव से सीखें। लेकिन साथ ही स्वतंत्र अपनी सोच और निर्भीक आलेख को भी न खोएं। पत्रकारिता केवल खबर लिखना नहीं, एक जिम्मेदारी है - समाज को दिशा देना की जिम्मेदारी।
हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएँ
हिंदी पत्रकारिता दिवस के इस पावन अवसर पर, हम सभी मठवासियों को एकजुट होकर संकल्प लेना चाहिए कि पत्रकारिता को उसकी खोई हुई गरिमा वापस दिलाएंगे। नमन उन कलाम के दोस्ती को, सच के लिए संघर्ष किया। और उन नवयुवकों को शुभकामनाएं, जो पत्रकारिता को भविष्य की मशाल बना रहे हैं।


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