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Sunday, March 30, 2025

नवरात्र में बड़ी खेरमाई और त्रिपुर सुंदरी में लगेगा भक्तों का तांता

 


[30/3, 09:10] Anurag Dixit: 

 प्रथम टुडे जबलपुर :-- जबलपुर की ऐतिहासिक श्री बड़ी खेरमाई मंदिर के सैकड़ों वर्षों की परंपरा अनुसार इस वर्ष भी मां जगदंबा श्री बड़ी खेरमाई माता का वैदिक रीति से पूजन आराधना का आयोजन चैत्र नवरात्र  को परंपरानुसार धूमधाम से मनाया गया, जहां सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ी।

52 वां गुप्त शक्ति पीठ हैं। बड़ी खेरमाई देवी पुराण में वर्णित 52 वें शक्तिपीठ पंचसागर शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है। आठ सौ वर्ष पूर्व के कल्चुरि क्षत्रिय राजाओं के शिलालेख के अनुसार बड़ी खेरमाई मंदिर पञ्च सरोवर गुप्त शक्तिपीठ के रूप में 52वीं शक्तिपीठ हैं। इस स्थान पर देवी का निचला जबड़ा गिरा था। इस स्थान पर देवी को वरही के नाम से जाना जाता है जो समय काल में अपभ्रंस होकर बड़ी खेरमाई के रूप में जाने जाना लगा। शास्त्रों में इस स्थान का उल्लेख के अनुरूप प्राचीन काल में मंदिर के आसपास पंच सरोवर थे जो समय काल में विलुप्त हो गए।

भानतलैया भी भानु तालाब के नाम से जाना जाता था परंतु अब उसका अस्तित्व कालांतर में समाप्त हो गया। माता के जबड़े को शिला स्वरूप में हजारों वर्षों से पूजा जाता रहा एवम वर्षों में इस शिला के आसपास घनघोर जंगल उग आए। सन 1434 में गढ़ा के गौड़ शासक अमानदास पर माधोगढ़ के सुल्तान ने आक्रमण कर उसे पराजित कर गढ़ा राजधानी में कब्जा कर लिया। राजा घायल अवस्था में भाग कर जंगल में पहुंचा एवंम अचेत हो कर शिला स्वरूप देवी के निकट गिर गया।

अचेत अवस्था में देवी ने उसे दर्शन दिए एवंम उसे आशीष प्रदान कर पुनः हमला करने को कहा। होश आने पर राजा ने अपने शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार पाया एवंम शेष सैनिकों को एकत्र कर पुनः आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। इस विजय के पश्चात अमानदास ने संग्राम शाह की पदवी धारण की और शिला देवी के ऊपर सिंघासन बना कर वर्तमान देवी की मूर्ति की स्थापना की एवंम उनके बायीं और दक्षिणमुखीश्री हनुमान एवंम  दाईं ओर श्री कालभैरव की मूर्ति प्रतिष्ठापित की।



                        त्रिपुर सुंदरी माता तेवर 

[ त्रिपुर सुंदरी मंदिर में भी लगेगी भक्तों  

एक हजार साल पुरानी है इस देवी की प्रतिमा, भूमि से हुई थीं अवतरितए क हजार साल पुरानी है इस देवी की प्रतिमा, भूमि से हुई थीं अवतरित


जबलपुर। माता त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी का मंदिर शहर से करीब 13 किमी दूर तेवर गांव में भेड़ाघाट रोड पर हथियागढ़ नामक स्थान पर स्थित है। 11वी शताब्दी में कल्चुरी राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण कराया था। यहाँ पर एक शिलालेख है, जिससे इसकी पुष्टि होती है। यहाँ साल भर भक्तों की आवाजाही रहती है। नवरात्र पर यहां की रौनक देखने लायक होती है। दशहरा उत्सव के दौरान भी यहां भारी भीड़ उमड़ती है।

 नवरात्र में लगती है भक्तों की भीड़ 

माना जाता है कि मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति भूमि से अवतरित हुई थी। यह मूर्ति केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में मौजूद है। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में माता महाकाली, माता महालक्षमी और माता सरस्वती की विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। त्रिपुर का अर्थ है तीन शहरों का समूह और सुंदरी का अर्थ होता है मनमोहक महिला। इसलिए इस स्थान को तीन शहरों की अति सुंदर देवियों का वास कहा जाता है। चूंकि यहाँ शक्ति के रूप में तीन माताएं मूर्ति रूप में विराजमान हैं, इसलिए मंदिर के नाम को उन देवियों की शक्ति और सामथ्र्य का प्रतीक माना गया है।


मंदिर में स्थापित मूर्ति के सम्बंध में कहा जाता है कि 1985 के पूर्व इस स्थान पर एक किला था, जिसमें यह प्राचीन मूर्ति थी। वहां पास में ही एक गड़रिया रहता था जो मूर्ति के पास अपनी बकरियां बांधता था। मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा की ओर था। बाद में धीरे-धीरे यहां कुछ अन्य विद्वानों का आना हुआ और मंदिर का विकास कार्य किया गया। अब भी मंदिर के ही समीप उस गड़रिया की झोपड़ी है।


राजा कर्णदेव ने बनवाई थी प्रतिमा

मंदिर के इतिहास को कल्चुरि काल से जोड़ा जाता है, जो उस समय से ही पूजित प्रतिमा है। इनके तीन रूप राजराजेश्वरी, ललिता और महामाया के माने जाते हैं। ऐसा मान्य है कि राजा कर्णदेव के सपने में आदिशक्ति का रूप मां त्रिपुरी दिखाई दी थीं। सपने में दिखी मां त्रिपुरी को स्थापित करने के लिए राजा कर्ण ने इसकी स्थापना करवाई थी।




इतिहासविद् डॉ. आनंद सिंह राणा ने बताया, त्रिपुर सुंदरी मूर्ति को लेकर कई मान्यताएं है। त्रिपुर केंद्र तांत्रिक पीठ हुआ करता था। यहां तांत्रिक कठोर साधना कर भगवान शिव को प्रसन्न करते थे। पुराणों में दर्ज है कि मूर्ति शिव के पांच रूपों से बनी थी, जिसमें ततपुरुष, वामदेव, ईशान, अघोर और सदोजात शामिल है। यह भी दर्ज है कि त्रिपुर क्षेत्र में त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध हुआ था।

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