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Saturday, October 18, 2025

अब चौथे स्तंभ को भी बेड़ियों में जकड़ने की कोशिश — क्या पत्रकारिता को दबाने का प्रयास?



प्रथम टुडे जबलपुर
देश में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन हाल ही में सामने आई घटनाओं ने इस स्तंभ की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजस्थान पुलिस द्वारा मध्य प्रदेश के इंदौर से ‘द सूत्र’ के दो वरिष्ठ पत्रकारों — एडिटर-इन-चीफ आनंद पांडे और मैनेजिंग डायरेक्टर हरीश देवकर — को गिरफ्तार किए जाने की कार्रवाई को लेकर पत्रकार जगत में गहरा आक्रोश है।

पत्रकारों का कहना है कि यह घटना न केवल प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार है, बल्कि यह संदेश देने की कोशिश भी है कि अगर कोई पत्रकार सरकार की कमियां उजागर करेगा, तो उसे परिणाम भुगतने होंगे।

‘द सूत्र’ की टीम आज भी डटी हुई
गिरफ्तारी के बावजूद ‘द सूत्र’ की टीम अपने संपादकों के साथ मजबूती से खड़ी है। देशभर के पत्रकार संगठनों और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने भी इस कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है।

जबलपुर के पत्रकारों का एकजुट समर्थन
जबलपुर के डिजिटल मीडिया से जुड़े पत्रकारों ने स्पष्ट कहा है कि वे ‘द सूत्र’ के संपादकों के साथ पूरी तरह खड़े हैं। उनका कहना है कि यदि पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला जारी रहा, तो वे लोकतांत्रिक तरीके से सड़कों पर उतरकर विरोध दर्ज कराएंगे।

“सरकार की कमियां बताना अपराध नहीं”
पत्रकारों का मानना है कि किसी भी सरकार के अच्छे कार्यों की सराहना करना और उसकी गलतियों की ओर ध्यान दिलाना — दोनों ही पत्रकार का धर्म है। यदि सरकार की आलोचना करना अपराध बन गया, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाएगी।

अब सवाल उठता है—
क्या अब पत्रकारिता भी सरकार की इच्छा के अनुसार चलेगी?
क्या सच बोलने वालों की आवाज़ को दबाने का यह नया तरीका है?

लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता केवल अधिकार नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है — और इस ज़िम्मेदारी को निभाने वाले पत्रकारों के साथ खड़ा होना समाज का भी कर्तव्य है।

 ‘प्रथम टुडे’ की राय:
सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन पत्रकारिता का धर्म और उसकी सच्चाई हमेशा कायम रहनी चाहिए। अगर चौथे स्तंभ को कमजोर किया गया, तो लोकतंत्र की इमारत हिल जाएगी।

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