प्रथम टुडे भोपाल। नवाब मोहम्मद हमीदुल्ला खान की संपत्ति पर उत्तराधिकार को लेकर वर्षों पुराना कानूनी विवाद अब एक नए मोड़ पर है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 14 फरवरी 2000 के आदेश को रद्द करते हुए इस संपत्ति विवाद की सुनवाई दोबारा शुरू करने के निर्देश दिए हैं। यह मामला अब फिर से ट्रायल कोर्ट में सुना जाएगा, जहां तय होगा कि नवाब की संपत्ति पर केवल उनकी बड़ी बेटी साजिदा सुल्तान और उनके वंशजों का अधिकार है या फिर अन्य वारिसों का भी दावा बनता है।
क्या है मामला?
भोपाल के अंतिम नवाब मोहम्मद हमीदुल्ला खान का निधन 4 फरवरी 1960 को हुआ था। उनके निधन के बाद उन्होंने चल-अचल संपत्ति का बड़ा हिस्सा छोड़ा। वर्ष 1999 में याचिकाकर्ता यसीर और फैज़ा सुल्तान ने दो दीवानी वाद दाखिल कर संपत्ति के बंटवारे, कब्जे और लेखा-जोखा को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नवाब की संपत्तियां उनकी व्यक्तिगत थीं और उनका उत्तराधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार होना चाहिए, न कि किसी शाही उत्तराधिकार नीति के तहत।
सरकार की अधिसूचना बनी विवाद की जड़
भारत सरकार ने 10 जनवरी 1962 को एक अधिसूचना जारी कर नवाब की बड़ी बेटी साजिदा सुल्तान को संपत्ति का अधिकृत उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। साजिदा के बेटे नवाब मंसूर अली पटौदी और बेटियां सलेहा व साबीहा इसके बाद उत्तराधिकारी बनीं, और फिर उनके बच्चे — शर्मिला टैगोर, सैफ अली खान, सोहा अली खान और सबा सुल्तान — संपत्ति पर दावेदार हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलील
यसीर और फैज़ा खुद को नवाब हमीदुल्ला खान की दूसरी (छोटी) बेगम के बेटे नसीर मिर्जा की संतान बताते हैं। इनका दावा है कि भारत सरकार द्वारा साजिदा सुल्तान को अकेली वारिस घोषित करना अनुचित था। वे कहते हैं कि यह संपत्ति केवल गद्दी की नहीं बल्कि व्यक्तिगत थी, और इसमें सभी वैध वारिसों का हिस्सा बनता है।
प्रतिवादियों का पक्ष
शर्मिला टैगोर और उनके परिवार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि भोपाल रियासत के भारत में विलय के समय हुए समझौते में स्पष्ट था कि नवाब की संपत्ति अगली शासक को हस्तांतरित होगी। चूंकि भारत सरकार ने साजिदा सुल्तान को अधिकृत उत्तराधिकारी घोषित किया, इसलिए उनके वारिस ही संपत्ति के स्वामी हैं।
हाईकोर्ट ने क्यों पलटा निचली अदालत का फैसला?
ट्रायल कोर्ट ने 14 फरवरी 2000 को याचिका खारिज कर दी थी। इस फैसले का आधार "तलत फातिमा बनाम नवाब मुर्तज़ा अली खान" का 1997 का निर्णय था। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि यह निर्णय 2020 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पलट दिया गया था।
जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अद्यतन कानून को नजरअंदाज कर गलत निर्णय दिया। इसलिए ट्रायल कोर्ट का फैसला रद्द कर मामले को पुनः सुनवाई के लिए वापस भेजा गया है।
अब क्या होगा?
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह एक वर्ष के भीतर इस विवाद का निपटारा करे। पक्षकारों को नए सिरे से साक्ष्य प्रस्तुत करने की छूट दी गई है। अदालत यदि आवश्यक समझे, तो पहले एक प्रारंभिक डिक्री पारित करेगी और बाद में विभाजन की औपचारिक प्रक्रिया पूरी कर अंतिम डिक्री जारी की जाएगी।
क्या बन सकता है इसका असर?
भोपाल नवाब की संपत्ति से जुड़ा यह मामला केवल एक परिवार तक सीमित नहीं है। यह फैसला देश के अन्य पूर्व रजवाड़ों की संपत्ति से जुड़े मुकदमों के लिए भी उदाहरण बन सकता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ और सरकार की अधिसूचनाओं की वैधता के बीच इस फैसले से एक नई न्यायिक दिशा तय हो सकती है।
?
No comments:
Post a Comment