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Sunday, June 15, 2025

केंद्रीय जेल में श्रीमद्भागवत कथा का दूसरे दिन : बंदियों ने भक्ति और संगीत से बाँधा समा

 


 प्रथम टुडे  जबलपुर। नेताजी सुभाष चंद्र बोस केंद्रीय जेल में बंदियों के मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया है। इस सात दिवसीय आयोजन की शुरुआत धर्म, भक्ति और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वातावरण में हुई। कथा का उद्देश्य अपराध के मार्ग पर भटके व्यक्तियों को धार्मिक साधना और आत्ममंथन के माध्यम से आत्मशुद्धि की ओर प्रेरित करना है।

कथा व्यासपीठ से शिव मंदिर कचनार सिटी के मुख्य आचार्य एवं मां दक्षिणेश्वरी धाम के संस्थापक सुरेंद्र दुबे शास्त्री जी महाराज ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण अत्यंत पुण्यदायी है। इसका एक श्लोक सुनने मात्र से एक हजार गोदान के बराबर फल प्राप्त होता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह रसपान देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, लेकिन जेल में रहते हुए भी कथा का अवसर मिलना भाग्य की बात है और इससे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

कथा के दूसरे दिन जेल महानिदेशक जीपी सिंह ने विशेष रूप से उपस्थित होकर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ व्यासपीठ का पूजन-अर्चन और आरती की। इस अवसर पर जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर और उप जेल अधीक्षक मदन कमलेश ने शास्त्री जी महाराज को पुष्पमाला, शाल और श्रीफल भेंटकर उनका सम्मान किया। कार्यक्रम में रूपाली मिश्रा, अंजू मिश्रा, प्रशांत चौहान, हिमांशु तिवारी, कुलदीप सिंह, ओमप्रकाश दुबे सहित कई जेल अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे। पूजन की संपूर्ण वैदिक विधि अमित उपाध्याय द्वारा मंत्रोच्चार के साथ संपन्न कराई गई।

इस आयोजन की एक विशेष बात यह रही कि कथा में संगत देने के लिए संगीत मंडली भी कैदियों की ही बनाई गई है। यह पहला अवसर है जब विभिन्न अपराधों में सजा काट रहे बंदियों ने स्वयं धार्मिक संगीत में भागीदारी की। कैदी ऑर्गन, ढोलक, तबला, पैड जैसे वाद्य यंत्रों पर भक्ति संगीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इनके सहयोग से वातावरण भक्ति से सराबोर हो गया। संगीत की इस श्रृंखला में शिवा विश्वकर्मा द्वारा प्रस्तुत किए गए भजनों ने भी सबको भावविभोर कर दिया।

इस आयोजन के माध्यम से जेल प्रशासन ने यह साबित किया है कि बंदी जीवन में चाहे किसी भी मोड़ पर क्यों न हों, सुधार और आत्मोन्नति के मार्ग हमेशा खुले होते हैं। धार्मिक आयोजनों के ज़रिए न केवल उन्हें आत्मचिंतन का अवसर मिलता है, बल्कि उनके मन में सामाजिक पुनर्वास की भावना भी जन्म लेती है। श्रीमद्भागवत कथा जैसे आयोजन यह संदेश देते हैं कि आध्यात्मिकता से जीवन की दिशा बदली जा सकती है और हर व्यक्ति में अच्छाई को पुनः जाग्रत किया जा सकता है।

यह आयोजन जेल के सुधारात्मक प्रयासों का एक सशक्त उदाहरण बनकर उभरा है, जिसमें धर्म, भक्ति, संगीत और आत्मशुद्धि का संगम देखने को मिला।

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