प्रथम टुडे जबलपुर :-- मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक अंतरराष्ट्रीय धोखाधड़ी का मामला सामने आया है, जिसमें विदेशी कंपनी क्रिस्टल माइंड ने स्थानीय कंपनी एमजी वेल्स सॉल्यूशन और उसके अधिकारियों पर लाखों की ठगी, जालसाजी और फर्जी दस्तावेजों के उपयोग का आरोप लगाया है। जबलपुर जिला न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कंपनी डायरेक्टर रविन्द्र सिंह बावा और सेल्स मैनेजर ई. डी. मूर्ति के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
व्यापारिक समझौते की आड़ में धोखाधड़ी
क्रिस्टल माइंड कंपनी के मालिक मुराद मानसी फाहिम ने अदालत में दिए गए अपने शपथ-पत्र में बताया कि भारत में तेल क्षेत्रों में उपयोग होने वाले उपकरणों की आपूर्ति हेतु उन्होंने एमजी वेल्स सॉल्यूशन से लगभग 90,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 75 लाख रुपये) का करार किया था। इसके तहत पहली किस्त के रूप में 45,000 डॉलर और बाद में 18,500 डॉलर, कुल 63,500 अमेरिकी डॉलर (लगभग 53 लाख रुपये) कंपनी को भेजे गए।
शिकायत के अनुसार, न तो वादा किया गया माल भेजा गया और न ही भुगतान वापस किया गया। आरोप यह भी है कि एमजी वेल्स ने जिंदल ड्रिलिंग को भेजे गए एक इनवायस में क्रिस्टल माइंड की अधिकृत मुहर और नाम का दुरुपयोग करते हुए फर्जी दस्तावेजों का निर्माण किया।
न्यायालय ने माना गंभीर आर्थिक अपराध
मामले की सुनवाई करते हुए जिला एवं सत्र न्यायाधीश देवरथ सिंह ने प्रस्तुत साक्ष्यों और दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया। न्यायालय ने पाया कि यह केवल एक व्यावसायिक विवाद नहीं, बल्कि सुनियोजित धोखाधड़ी, विश्वासघात और आर्थिक अपराध है। अदालत ने मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 418 (झूठे तथ्य से लाभ उठाना), 409 (आपराधिक विश्वास भंग), 467 (फर्जी दस्तावेज बनाना), 469 (प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने हेतु जालसाजी), 472 व 473 (फर्जी सील एवं दस्तावेज तैयार करना व उपयोग करना) जैसे गंभीर प्रावधान लागू किए हैं।
पुलिस जांच की नहीं समझी आवश्यकता
यह परिवाद वर्ष 2022 में दर्ज किया गया था, अतः यह मामला अभी भी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के पुराने प्रावधानों के अधीन है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी को संज्ञान लेने से पूर्व सुनवाई का अवसर देना आवश्यक नहीं है।
सामन जारी, अगली सुनवाई 30 जुलाई को
दोनों आरोपियों का कार्यालय जबलपुर में ही होने के कारण उनके फरार होने की आशंका नहीं जताई गई है। इसलिए कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट के स्थान पर समन जारी कर 30 जुलाई 2025 को अदालत में उपस्थिति के निर्देश दिए हैं, बशर्ते शिकायतकर्ता समय पर समन शुल्क और आवश्यक दस्तावेज जमा कर दें।
अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास भी दांव पर
यह मामला सिर्फ व्यक्तिगत या व्यावसायिक ठगी नहीं है, बल्कि भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक निवेशकों के भरोसे पर भी सवाल खड़े करता है। हालांकि, न्यायालय द्वारा इस गंभीर धोखाधड़ी को संज्ञान में लेकर सख्त कदम उठाया जाना दर्शाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था ऐसी स्थितियों में निष्पक्ष और संवेदनशील रूप से कार्य करती है।
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