प्रथम टुडे जबलपुर:- - ई रिक्शा जो शहर के लिए आप धीरे-धीरे सर दर्द बनते जा रहे हैं। इनकी धमा चौकड़ी को रोकने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन दोनों ही नाकाम दिख रहे हैं। लगातार दिनों दिन उनकी धमा चौकड़ी बढ़ती ही जा रही है।
ई रिक्शा की धमा चौकड़ी को लेकर जब लगातार मीडिया और एक व्यापारी की मृत्यु के बाद इन पर लगाम कसने की बात कही गई थी तो जिला प्रशासन की तरफ से कलेक्टर ने इनके साथ बैठक भी की थी और रूट तय करने की बात कही थी वहीं पुलिस प्रशासन ने भी इनके रूट बांटने की बात कही थी और काम भी शुरू किया था। आलम तो यह है कि अब कोई रिक्शा चालक अगर पुलिस विभाग में जा रहा है और रूट के लिए स्टीकर चिपकाने की बात कह रहा है तो वह भी कहा जाता है कि स्टिकर खत्म हो चुके हैं।
*प्रयास के नाम पर रूट बांटने की बात कही*_ ई-रिक्शा को व्यवस्थित संचालित करने के लिए इनके रूट ताई किए जाने की बात कही गई थी। जिसमें ई-रिक्शा चलाने वालों को स्टिकर लगाकर उनके रूट बांटे गए थे। लेकिन यह प्रक्रिया भी पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही है। इसका कारण भी यह है कि स्टीकर तो चिपका दिए गए लेकिन स्टीकर चिपकने के बाद और ज्यादा अराजक हो गए हैं।
*पता ही नहीं किस कलर का स्टीकर किस रूट के लिए*- स्पीकर चिपकाने के साथ जो रूट तय किए गए थे उसमें दीनदयाल चौक से पुराना बस स्टैंड, आधार कार्ड से रद्दी चौकी होते हुए रेलवे स्टेशन, मेडिकल से पुराना बस स्टैंड होते हुए रेलवे स्टेशन, इसी तरह गोरखपुर चौराहे से ग्वारीघाट और मेडिकल के लिए इन सभी रूटों पर अलग-अलग कलर के ई-रिक्शा में स्पीकर चिपकाए गए थे। लेकिन देखने में आ रहा है कि एक तो आमजन को यह नहीं मालूम की किस कलर का स्टीकर किस रूट के लिए है, दूसरा इनमें डाली नंबर कभी कोई ज्ञान लोगों को नहीं है। जिसका फायदा यह इच्छा संचालक पूरी तरह से उठा रहे हैं।
अगर स्टीकर के हिसाब से कार्यवाही हो तो लग सकती है लगाम - अगर ई रिक्शा में चस्पा किए गए ई रिक्शा चालकों के ऊपर कार्यवाही की जाए तो हो सकता है, कुछ हद तक इनकी धमा चौकड़ी और अराजकता पर कुछ लगाम कसी जा सकती है।
कुछ तो बिना स्टीकर के ही दौड़ रहे हैं- वहीं कुछ ई रिक्शा चालक तो प्रशासन की इस मुहिम को ठेंगा दिखाते हुए नजर आ रहे हैं। ई रिक्शा चालक बिना स्टीकर के बेधड़क सड़कों पर अपना आतंक मचा रहे हैं।
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